लगता है, ये बुरा सपना सच हो उससे पहले
कहीं और बसर करना पड़ेगा,
हमें अब मिन्नतों का सिलसिला शुरू करना पड़ेगा।
ये सपना आज आया क्यों मुझे,
लगता है अब मुझे अपना ये घर छोड़ना पड़ेगा।।
कुछ अच्छा भी था कुछ बुरा भी था ये सपना,
मेरा घर उजड़ा तो क्या हुआ?
मेरे ही किसी अपने का तो घर बसा रहा था ये सपना। कभी-कभी वो ख़याल आ जाया करता था
जो आज सपने में मैंने देखा था,
जो भी हो पर लगता है सच तो होगा ही ये सपना।।
हर वक्त एक डर लगा रहता है दिल में मेरे
कि आगे होगा क्या,
इस सफर में मुझे कोई हमसफ़र मिलेगा क्या।
मेरा हाल कुछ भी हो मुझे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता,
पर डर ये है कि मेरे उस अपने का होगा क्या..?
✍️ रीना कुमारी प्रजापत