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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

रोज़ योग करो मौज...

रोग निरोग करे तन को
शुद्ध विशुद्ध करें मन को
यह देशी अमृत का प्याला है
खा खा कर तोंद फूला
निकल रहा दिवाला है।
रहना है स्वस्थ सात्विक
तो योग को अपनाना है।
विश्व में देखो बज़ रहा
चाहूं ओर योग का डंका है।
आलस भगाए तन मन को
जगाए यह अमृत का प्याला है।
राजा हो या रंक कोई भी
सबके लिए वरदान है योग
भारत के ऋषि मुनियों की
सतत् अभ्यास की ख़ोज है योग।
बनाए शतायु करे दीर्घायु
सफ़ल सजग बनाता है।
करता है जो योग नित्य
वह हिष्ट पुष्ट आकर्षक शरीर पता है।
जीवन की सारी रंगीनियां
खुशियां सब कुछ पा लेता है।
है योग जो तुम करो थोड़ा भी
प्रयोग यह यह जीवन स्वर्ग बनाता है।
बूढ़ों को ज़वान कर दे
ज़वान को रॉकेट बना दे
बच्चे को भी ज़वान कर दे
यह बड़ा हीं काम आता है।
योग से तो यारों देश का अपना
बड़ा हीं पुराना नाता है।
थोड़ी सी भी तुम योग कर लो
इसमें कोई नुकसान नहीं
है यह तरक्की प्रगति की चाभी
इसके जैसे दूजा यन्त्र नहीं।
जीवन की सच्चाई यही है
यारों ये योग तो बड़ी सही है।
फलतः रोज़ योग करो मौज
रोज़ योग करो मौज....




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (2)

+

Ankush Gupta said

Antrashtriy yog divas ki agrim subhkamnayein, bahut sundar likha aapne

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

योग की सारी विषेशताएं आपने रचना के माध्यम से बहुत ही सुंदरता से बताई हैं बहुत खूब मैं भी कोशिश करूँगा कल से योग पर ध्यान देने की आपका बहुत बहुत धन्यवाद प्रणाम स्वीकार करें

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