खुद की खुशियों के संग खुद के संग
जीवन के सबसे प्रिय संगी के संग
आंसुओ के संग मुस्कानों के संग
डूबती थकी सी एक जिंदगी के संग
हैं घूम आए अबकी दुनियां हम खुद के संग.....
कभी डगमगाते कदमों से गंगा किनारे चलते
आंखो की तितलियों से हम पेड़ बाग तकते
कहीं दूर एक पहाड़ी पर गूंजती है कोयल
झर झर से बह रहे हैं झरने यहां वे अविरल
तन्हाइयो में खुद की खुद डूब आए हम संग
हैं घूम आए अबकी दुनियां हम खुद के संग.....
है संग तो हजारों है खुद में सब अकेले
कोई थक गया है सब से कोई राह अंत ढूंढे
कोई है भटक गया तो कोई खुद से खुद को ढूंढे
तन्हाइयो से भरकर कोई जीव रेल खींचे
कमियां रही सदा ये कोई ढूंढ न सका संग
हैं घूम आए अबकी दुनियां हम खुद के संग.....