आज अपने ही अपने ना रहे,
तो परायों से क्या अपनेपन की उम्मीद लगाना(2)
जब अपने ही ना इंसाफ़ी पर उतर आए,
तो परायों से क्या इंसाफ़ की उम्मीद करना।
एक गलतफहमी में जी रहे थे हम
कि वो हमारे हैं(2)
पर सच तो आज पता चला
कि वो तो कभी हमारे थे ही नहीं।
आज वो अपना ही अपनों को बदनाम कर रहा है
आज वो अपना ही अपनों पर उंगली उठा रहा है,
आज कुछ ऐसा किया उस अपने ने
कि ये दिल बस रो ही रो रहा है।
आज अपने पराये बन गए
आज अपने ही दगा दे गए(2)
हमारे अपने ही हमारे बैरी से मिल गए,
आज वो अपने इतनी गहरी चोट हमारे दिल को दे गए।
💐 रीना कुमारी प्रजापत 💐
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




