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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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कविता की खुँटी

                    

जब अपने ही अपने ना रहे

आज अपने ही अपने ना रहे,
तो परायों से क्या अपनेपन की उम्मीद लगाना(2)
जब अपने ही ना इंसाफ़ी पर उतर आए,
तो परायों से क्या इंसाफ़ की उम्मीद करना।

एक गलतफहमी में जी रहे थे हम
कि वो हमारे हैं(2)
पर सच तो आज पता चला
कि वो तो कभी हमारे थे ही नहीं।

आज वो अपना ही अपनों को बदनाम कर रहा है
आज वो अपना ही अपनों पर उंगली उठा रहा है,
आज कुछ ऐसा किया उस अपने ने
कि ये दिल बस रो ही रो रहा है।

आज अपने पराये बन गए
आज अपने ही दगा दे गए(2)
हमारे अपने ही हमारे बैरी से मिल गए,
आज वो अपने इतनी गहरी चोट हमारे दिल को दे गए।
💐 रीना कुमारी प्रजापत 💐




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (6)

+

Lekhram Yadav said

मेरी प्यारी बहना सुबह की राम राम। हम जिनको अपना बनाते हैं और अपना कहते हैं हमेशा वही पराया कर देते हैं । आपने बहुत सुन्दर ढ़ंग से अपनी कविता में इस बात को पेश किया है।

रीना कुमारी प्रजापत replied

राम राम 🙏 बहुत बहुत धन्यवाद आपका

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Waah ye mila kuch apna sa uttam rachna✍️👌👌🙏🙏 Pranam sweekar karein

रीना कुमारी प्रजापत replied

प्रणाम स्वीकार है 🙏 बहुत बहुत आभार आपका

मोहन कुमार said

Bahut achha likha mere man ki baat kah daali.

रीना कुमारी प्रजापत replied

बहुत बहुत धन्यवाद

Shyam Kumar said

Sach bat ha..dusro ke diye dard to bhulaye bhi jaaye pr apno ke diye dardo ka kya kare .

रीना कुमारी प्रजापत replied

जी बिल्कुल

रमेश चंद्र said

अपनों के दिए जख्म ज्यादा चुभते हैं दूसरों का तो क्या ही कसूर है

रीना कुमारी प्रजापत replied

दूसरो से क्या लेना देना.... शुक्रिया

फ़िज़ा said

Bahut khoob umda likha kayal hu aapki rachnaon ki

रीना कुमारी प्रजापत replied

बहुत बहुत शुक्रिया

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