जोंक - डॉ एच सी विपिन कुमार जैन "विख्यात"
जोंक की तरह, चिपक गया है तू।
दूसरों का खून पी पी कर, मोटा हो रहा है तू।
पीठ पीछे इंसानों के, छुरा घोंप रहा है तू।
नाली के कीड़े, लगता कितना मासूम है तू।
औरों के हक को खाकर, ढूंढ रहा है।
नई-नई कहानी सुनाकर, लूट रहा है।