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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

रोज गलियों में

कापीराइट गजल

फिरता हूं भटकता मैं  रोज गलियों  में
मैं ढूंढ़ता हूं किसी को रोज गलियों में

महकती थी ये गलियां उन के आने से
जैसे महकती है खुशबू रोज कलियों में

धङकता था ये दिल देख कर उन को
वो जब भी रखते थे कदम गलियों में

एक हसरत है दिल में देखने की उसे
बैठे, हैं बिछाए आंखें रोज गलियों में

काश गुजरें वो फिर से एक बार यूं ही
कर रहे हैं ये इन्तज़ार रोज गलियों में

उसे खबर है कहां इस बात की यादव
तकते, हैं राह उन की रोज गलियों में

- लेखराम यादव
... मौलिक रचना ...


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

श्रेयसी said

वाह बहुत सुंदर रचना और भगवान करे जल्द इंतज़ार ख़त्म हो जाए😊 सुप्रभात सादर प्रणाम लेखराम भैया 🙏🙏

Lekhram Yadav replied

आपका बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद मेरी प्यारी बहना आपको सुप्रभात सहित सादर नमस्कार

श्रेयसी said

Please meri aaj ki rachna par jo aapne kaha uska reply to padhiye

Lekhram Yadav replied

मेरी प्यारी बहना आपका बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद एवं आभार, आपकी रचना पढी बहुत अच्छा लगा आपको सादर नमस्कार

रीना कुमारी प्रजापत said

Zara ghour se dekhiye hum ab bhi unhi galiyon mein hai... 😊🙏Pranaam सुप्रभात

Lekhram Yadav replied

ओह क्या बात है मेरी प्यारी बहना, मुझे मालूम है, आप कई दिन से नजर नहीं आ रही थी, इसलिए ये गजल लिखा, मैं आपको कितना मिस कर रहा था ये आप कहां समझेंगी, आपका बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद एवं सादर नमस्कार

वन्दना सूद said

सुंदर सुंदर सुंदर अति सुंदर 🙌🏻🙌🏻🙌🏻आपकी गज़ल पढ़ते हुए हमेशा यह भ्रम रहता है जैसे हमारे लिए ही लिखी हो इसलिए मुस्कुराते हुए पढ़ते हैं

Lekhram Yadav replied

आदरणीय वन्दना जी आपको बहुत-बहुत हार्दिक धन्यवाद एवं सुप्रभात

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