कापीराइट गजल
फिरता हूं भटकता मैं रोज गलियों में
मैं ढूंढ़ता हूं किसी को रोज गलियों में
महकती थी ये गलियां उन के आने से
जैसे महकती है खुशबू रोज कलियों में
धङकता था ये दिल देख कर उन को
वो जब भी रखते थे कदम गलियों में
एक हसरत है दिल में देखने की उसे
बैठे, हैं बिछाए आंखें रोज गलियों में
काश गुजरें वो फिर से एक बार यूं ही
कर रहे हैं ये इन्तज़ार रोज गलियों में
उसे खबर है कहां इस बात की यादव
तकते, हैं राह उन की रोज गलियों में
- लेखराम यादव
... मौलिक रचना ...
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




