कापीराइट गीत
वो, जब से ख्यालों में, आने लगे हैं
वो आंखों से निंदिया चुराने लगे हैं
हवाओं, में खुशबू, महकने लगी है
इन, घटाओं में मस्ती, छाने लगी है
अब, सांसें, हमारी, बहकने लगी हैं
वो सपनों में आ कर जगाने लगे हैं
वो आंखों से निंदिया ..............
इन, आंखों में मस्ती, छाने लगी है
ये, खामोशियां, भी, बुलाने लगी हैं
न जाने हमें अब ये क्या हो गया है
अब उन से ही नजरें, चुराने लगे हैं
वो आंखों से निंदिया ...............
कलियां भी अब मुस्कुराने लगी हैं
वो भंवरों को नगमें सुनाने लगी हैं
मेरी, नींदें न जाने, कहां खो गई हैं
वो ख्यालों में दुनियां बसाने लगे हैं
वो आंखों से निंदिया ...............
अब, नींदों में आंखें, जगने लगी हैं
यूं सवालों में रतियाँ, कटने लगी हैं
इस, दिल पर, काबू, मेरा अब नहीं
अब धीरे से दिल में, समाने लगे हैं
वो आंखों से निंदिया ...............
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
सर्वाधिकार अधीन है