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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

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The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

राम कहाँ बन पाएंगे - अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'

आम नहीं बन सकते जो, राम कहाँ बन पाएंगे,
बात बात तलवार उठाना, मुरली बजा ना पाएंगे।
प्रेम शब्द जाना ना हो जिसने, भक्ति कहाँ से लाएंगे,
मीरा की तो बात दूर है, खुद स्वयं को जान ना पाएंगे।

त्याग कहाँ अब बाक़ी है, रघुकुल रीति निभा ना पाएंगे,
छोटे स्वार्थों में उलझे हैं, वनवास सह ना पाएंगे।
सीता की मर्यादा तो क्या, अब माँ का मान बचा ना पाएंगे,
लव-कुश जैसे बालक अब, गुरुकुल में ठहर ना पाएंगे।

कृष्ण-चेतना दूर बहुत है, गीता कोई पढ़ता नहीं,
मोह-माया में फँसा हुआ, आत्म-ज्ञान से लेना देना नहीं।
सुदामा से कौन मिले अब, मित्रभाव भी झलकता नहीं,
धन से नापें रिश्ते सारे, प्रेम कहीं अब दिखता नहीं।

कबीर के दोहे अब तो, व्हाट्सऐप स्टेटस बनते हैं,
पर जीवन में उतरें ऐसे, बिरले ही कुछ जन चलते हैं।
नानक जैसा दृढ़ विश्वास, अब मन में ठहरता नहीं,
सच्ची बानी, सेवा, सिमरन — कोई अब करता नहीं।

महावीर का क्षमा-पथ तो, आज मज़ाक बनता है,
गौतम की करुणा को भी, बस ग्रंथों में पढ़ता है।
राह दिखाई जिन ऋषियों ने, उनको ही ठुकराया है,
धरती के इन दीपों को अब, अंधकार भुलाया है।

फिर भी आशा बाकी है, जब अंतर में प्रकाश जगेगा,
राम-कृष्ण ना ही सही, पर इंसान तो कोई बनेगा।
जागो हे मानव! वक़्त यही है, फिर से पथ अपनाने को,
वरन इतिहास माफ़ न करेगा, धर्म को ठुकराने को।

----अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (10)

+

आलोक कुमार गुप्ता said

लाजवाब रचना! बहुत सुन्दर आइना!

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय अलोक सर जी को समीक्षा के लिए बहुत बहुत आभार, आपकी समीक्षा प्रेरित करती हैं

पवन कुमार "क्षितिज" said

वाह आर्द्र जी..अपने आंखे आर्द्र कर दी..रामायण, महाभारत, बौद्ध, नानकदेव सबको याद करते हुए कैसी सीख भरी रचना रची है..आपको साधुवाद...✍️👌👌

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय पवन सर जी को समीक्षा के लिए बहुत बहुत आभार एवं सादर प्रणाम, आपकी समीक्षा प्रेरित करती हैं

ANIL KUMAR SHARMA said

फिर भी आशा बाकी है, जब अंतर में प्रकाश जगेगा,
राम-कृष्ण ना ही सही, पर इंसान तो कोई बनेगा बहुत सकारात्मक एवं खूबसूरत सोच के साथ लिखी गयीं पंक्तियाँ

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय Anil सर जी को समीक्षा के लिए बहुत बहुत आभार एवं सादर प्रणाम, आपकी समीक्षा प्रेरित करती हैं

Ankush Gupta said

बहुत खूब अशोक जी 👌 👌

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय Ankush सर जी को समीक्षा के लिए बहुत बहुत आभार एवं सादर प्रणाम, आपकी समीक्षा प्रेरित करती हैं

वन्दना सूद said

वाह अशोक जी वाह
हर पंक्ति का हर शब्द मार्गदर्शन कर रहा है ऐसा लगता है जैसे गुहार लगा रहा हो अभी भी वक्त है संभल जाओ 🙏🙏👌👌बहुत खूब लिखा

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय Mam जी को समीक्षा के लिए बहुत बहुत आभार एवं सादर प्रणाम, आपकी समीक्षा प्रेरित करती हैं

Vadigi.aruna said

सुंदर अभिव्यक्ति 👌👌

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय Mam जी को समीक्षा के लिए बहुत बहुत आभार एवं सादर प्रणाम, आपकी समीक्षा प्रेरित करती हैं

सुभाष कुमार यादव said

सनातन संस्कृति को अपनाकर ही हम अपने अस्तित्व को बचा सकते हैं। आपकी रचना एक ओर सीख दे रही, दूसरी ओर प्रश्न भी पूछ रही की हम किस प्रकार जीवन-यापन कर रहे। आपने जितने व्यक्तित्व का वर्णन किया है, वास्तव में वे हमारी जड़ें हैं। इनसे भिन्न हो कर हम कभी पल्लवित, पुष्पित नहीं हो सकते। बहुत सुंदर रचना, बहुत सुंदर अभिव्यक्ति। सादर प्रणाम आदरणीय पचौरी सर।🙏🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय यादव सर जी को समीक्षा के लिए बहुत बहुत आभार एवं सादर प्रणाम, आपकी समीक्षा प्रेरित करती हैं, इतनी सुन्दर समीक्षा पाकर मैं सच में धन्य होगया

श्रेयसी said

काश जाग जाए मानव तो असमाजिक तत्व
दिखें हीं न पथ पर । बहुत सही लिखा आपने शायद कहीं किसी की आँखें खुल जाए। लाज़वाब रचना हमेशा की तरह। आपको सादर प्रणाम अशोक जी 🙏🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय श्रेयसी जी को समीक्षा के लिए बहुत बहुत आभार एवं सादर प्रणाम, आपकी समीक्षा प्रेरित करती हैं,

विजय प्रकाश श्रीवास्तव said

भाव पूर्ण और सब के ज़मीर को जगाती रचना. अशोक कुमार जी , आप की रचना बहुत सारगर्भित है. मेरा अभिवादन स्वीकारें.

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय श्रीवास्तव सर जी को समीक्षा के लिए बहुत बहुत आभार, अभिवादन एवं सादर प्रणाम, आपकी समीक्षा प्रेरित करती हैं, इतनी सुन्दर समीक्षा पाकर मैं सच में धन्य होगया, सादर प्रणाम, आदरणीय

प्रो. स्मिता शंकर said

पुरातन सनातन संस्कृति की तुलनात्मक बहुत जी सुंदर अभिव्यक्ति किया है आपने। सही भी है की सनातन को अपना कर ही हम अपनी संस्कृति और इंसानियत को बचा पाएंगे। सच में कविता पढ़कर में आँखे आद्र हो गई। पचौरी जी। 👌👌👏 ऐसे ही सदा लिखते रहे आप।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीया प्रोफेसर Mam, को सादर प्रणाम एवं चरण स्पर्श, आपकी भावभीनी समीक्षा मेरे लिए सौभाग्य एवं आशीर्वाद का कार्य कर रही है, एवं और बेहतर लेखन के लिए प्रेरित कर रही है, आपके जैसी विद्वान एवं वरिष्ठ साहित्यकार के द्वारा रचना को पढ़ना एवं उसको समीक्षा देने योग्य समझा जाना खुद में किसी ईश्वरीय कृपा से कम नहीं है, आपको बारम्बार प्रणाम आदरणीया

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