New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.



The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
पटल में सुधार सम्बंधित आपके विचार सादर आमंत्रित हैं, आपके विचार पटल को सहजता पूर्ण उपयोगिता में सार्थक होते हैं|

The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

हमने देखा है खुशी को

हमने देखा है खुशी को गम में ढ़लते हुए
हमने देखा है किसी को गम में जलते हुए

कौन पोंछेगा अब इनकी आंखों
के आंसू
हमने देखा है सभी को तब रंग
बदलते हुए

किसने देखे हैं भला उनके पैरों
के छाले
हमने देखा है उन्हें गर्म राहों पे
चलते हुए

गैर तो गैर थे अपनों से भी बढ़
गई दूरी
हम ने देखा है अभावों में लोग
मरते हुए

छूना भी तब मुनासिब नहीं समझता कोई
छुपा लेते थे चेहरा वो घर से निकलते हुए

आखिरी रस्म अपनों की निभा नहीं पाए
छुप के बैठे थे घरों में मौत से
डरते हुए

दो गज की दूरी यादव तुम भी
बनाए रखना
वर्ना पछताओगे तुम भी ये दम
निकलते हुए
लेखराम यादव

प्रिय पाठको ये रचना कोरोना काल में उस समय लिखी गई थी जब देश और विदेश में करोना ने अपने आतंक से सबको बेहाल कर दिया था और लोग दिल्ली, मुम्बई और विदेश से लोट रहेगे और सङकों प्रभूत प्यास को दरकिनार करते हुए नंगे पाव चल रहे थे। लोग आक्सीजन और दवाओं के अभाव में मरने को मजबूर थे। अपनों का साथ पाने के लिए तरस गए थे। अपने चहरे पर मास्क लगाने और दो गज की दूरी बनाए रखने के लिए मजबूर थे।


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


समीक्षा छोड़ने के लिए कृपया पहले रजिस्टर या लॉगिन करें

रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

विपिन कुमार said

सुन्दर रचना मार्मिक उस भयावह समय को याद करना या दोहराना कोई नहीं चाहेगा लेकिन दो गज की दूरी आज भी जरुरी है

Lekhram Yadav replied

Dear Vipin Kumar ji welcome with thanks to judge my creation.

Vineet Garg said

Bo woqt bahut hi kharab tha😭😭...aapki rachna bahut hi bhaavpurn hai. Keep it up Bhai.

Lekhram Yadav replied

Dear Vinit Garg ji welcome with thanks to appreciate my efforts.

वेदव्यास मिश्र said

लेखराम यादव जी, बहुत ही सम्वेदनशील मुद्दे पर इतनी खूबसूरत रचना लिखने के लिए बहुत-बहुत बधाई 👌👌

Lekhram Yadav replied

धन्यवाद सहित नमस्कार वेदव्यास मिश्र जी।

कविताएं - शायरी - ग़ज़ल श्रेणी में अन्य रचनाऐं




लिखन्तु डॉट कॉम देगा आपको और आपकी रचनाओं को एक नया मुकाम - आप कविता, ग़ज़ल, शायरी, श्लोक, संस्कृत गीत, वास्तविक कहानियां, काल्पनिक कहानियां, कॉमिक्स, हाइकू कविता इत्यादि को हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, इंग्लिश, सिंधी या अन्य किसी भाषा में भी likhantuofficial@gmail.com पर भेज सकते हैं।


लिखते रहिये, पढ़ते रहिये - लिखन्तु डॉट कॉम


© 2017 - 2025 लिखन्तु डॉट कॉम
Designed, Developed, Maintained & Powered By HTTPS://LETSWRITE.IN
Verified by:
Verified by Scam Adviser
   
Support Our Investors ABOUT US Feedback & Business रचना भेजें रजिस्टर लॉगिन