मेरा इसमें दोष कहां?
मैं तो सम्मान दिया करता था, प
पर लेने वाले लिए नहीं,
जब लेने वाले लिए नहीं,
तब मेरा इसमें दोष कहां?
मैंने मूल्य नहीं मांगा था,
फ्री में ही सम्मान दिया। यदि फ्री में भी ले सके नहीं तो,
मेरा इसमें दोष कहां?
हृदय में अपने जगह बनाकर उनको वहां बिठाया था,
बैठे नहीं हृदय में वह तो,
मेरा इसमें दोष कहां?
लोभ मोह मद आकर्षण में जो खुद जाकर घिर जाए,
और डूबने लगे वहां तब,
मेरा इसमें दोष कहां?
मुझे प्रतिष्ठा दिए नहीं,
खुद बचा बचा कर रखते थे,
फिर भी वो प्रतिष्ठा हीन हुए,
तब मेरा इसमें दोष कहां?
अग्नि बाण मय कटु वाणी का,
करते प्रहार पीछे से,
यदि हृदय हुआ छलनी मेरा,
तब मेरा इसमें दोष कहां?
प्रस्तुतकर्ता कवि:
पाण्डेय शिवशंकर शास्त्री निकम्मा।
मंगतपुर पकरहट सोनभद्र उत्तर प्रदेश।