किसी ने उनको देखा है क्या?,
थोड़ी सी बेचैन थीं वो कुछ,
थोड़ा मुझसे नाराज हुईं थीं,
जिनके बिन दिन नहीं था होता,
ना जाने वो कहाँ गयीं हैं,
जब से गयीं हैं रातें हीं हैं,
ना जाने मेरे दिन हैं कहाँ पर?
ना जाने वो कहाँ गयीं हैं,
रात चांदनी, दिन था उजाला
ग़ुम हैं कहीं वो, और रोशनी ,
किसी ने उनको देखा है क्या?,
शब्द थे उनके फूलों जैसे,
ग़ुम हैं उनकी बातें अब तो,
ना वो फूल हैं न वो खुशबू,
किसी ने उनको देखा है क्या?
----अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'