बीती बातों से ग़म अपना बढ़ाया न करो
गुज़रे लम्हों में दिल कभी उलझाया न करो
जो ज़ख्म दे वही दे मरहम भी अक़्सर तो
बार-बार क्रम माफ़ी का दोहराया न करो
जुड़ न पाए मन किसी से बे-मन जुड़ना क्यूँ
राहें हैं और भी कई उम्र यूँ हीं ज़ाया न करो
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बार-बार क्रम माफ़ी का दोहराया न करो
जुड़ न पाए मन किसी से बे-मन जुड़ना क्यूँ
राहें हैं और भी कई उम्र यूँ हीं ज़ाया न करो