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कविता की खुँटी

        

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कविता की खुँटी

                    

खुद को नहीं पाया - अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'

ढूंढा बहुत ज़माने में मैंने खुद को,
अंजाम तक पहुंचा लेकिन खुद को नहीं पाया।

----अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (9)

+

कमलकांत घिरी said

वाह सर जी क्या खूब लिखा आपने हृदय स्पर्शी रचना👌👏🙏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

कांत सर प्रणाम स्वीकार करें समीक्षा के लिए ह्रदय से आभार

ताज मोहम्मद said

बहुत खूब बड़े भाई। बहुत ही गहरी बात कही आपने।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

ताज साहब प्रणाम है आपको आपने इसे समीक्षा योग्य समझा, समीक्षा के लिए बहुत बहुत आभार

Keshav Atri said

Waah kya gharai ha lines h.

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका बहुत बहुत आभार

Komal Raju said

Are waah. Dil ki bat kh di. Bahut khub.

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आपका बहुत बहुत आभार

Lekhram Yadav said

सर जी बहुत अच्छी अभिव्यक्ति है आपकी लेकिन एक प्रार्थना है आपसे अकेले खुद को मत ढ़ूंढ़ने जाया करो मैं हरिया को साथ भेज दूंगा।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

नमस्कार यादव सर अवश्य आपकी राय का अनुसरण किया करूँगा आगे से ध्यान रखूँगा प्रणाम

Vadigi.aruna said

Very nice sir

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

Thank you very very much Mam

डॉ कंचन जैन "स्वर्णा" said

बहुत सुंदर

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

आदरणीय डॉ Mam, आपका बहुत बहुत आभार जो आपने रचना को समीक्षा के योग्य पाया

वन्दना सूद said

Great lines 🙏🙏👏👏

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

Thank you very much mam Pranam 🙏🙏

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

दो ही पंक्ति में लंबी दास्तान, वाह, अशोक जी।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' replied

Preranadaayi shabdon ke liye aapka bahut bahut abhaar

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