कोशिशें लाख़ तुझे मानने की
नाकाम हों गईं।
पर ये तो बता दो मुझे की मुझसे क्या
गलतियां तमाम हों गईं।
उम्र गुज़र जातीं हैं अक्सर लोगों को
सच्चा प्यार पाने में ।
और वर्षों गुज़र गईं मुझे तुझे फिर से
मानने में ।
और तुमने भी ना कोई शक शुबा छोड़ा
मुझे आजमाने में।
अरे ये तो बता दो कहां छेद रह गई
मेरे पैमाने में।
सबकुछ है इस अंजुमन में पर
रौनक नहीं है
अरे मेरी महफिलों की रौनक तू जो तू
इस बज़्म में हीं नहीं है।
वस्ल में हम मिलें थे सपनों के वास्ते
पर अलग हो गए ना जानें क्यूं अपनें रास्ते।
थी मेरी खता या रज़ा तेरी नहीं थी
मेरी कस्ती वहीं डूबी जहां तू खड़ी थी।
फिरभी है यकीं मुझे मेरी मुहब्बत पे
एक दिन तू मिलेगी जहां से तू गई थी।
तुम सजाते हीं रहना यादों की काफिलें
दिलों में सदा हीं जलने देना मोहबतों के मेरे दीये।
खुदा ने चाहा तो एक दिन मिलेंगे ज़रूर
सपनों के फूल फिर दिल में खिलेंगे हुज़ूर
हम फिर मिलेंगे ज़रूर....
हम जल्द मिलेंगे ऐ मेरी हुज़ूर....
हम फिर मिलेंगे हम जल्द मिलेंगे...