वो मेरे जीवन का, अजीब सा हिस्सा है
उसके बिना अधूरा,मेरा हरेक किस्सा है
जिस शाम वो,मेरा इंतजार नहीं करती
शाम का हरेक पल, लगता बूझा बूझा सा है
सुबह, जब तक वो,चादर खींच नहीं जगाती
लगता नहीं कि, सुबह, सुबह सा है
वो पास न हो, फिर भी शाम सुहानी लगे
ऐसा लगता है, कि, मौसम ही खफा खफा सा है
आइना देखूं और मुस्कान आंखों में आ जाए
फिर तो पक्का है,आइना ही रूठा रूठा सा है
उसके बिना, चांदनी छिटके, रातें नशीली हो
खुदा की ऐसी करम पर, आता बड़ा गुस्सा है।
सर्वाधिकार अधीन है