प्रेम की परिभाषा हम स्वयम् बन जाएँ
प्रेम का अर्थ न बदलिए जनाब
भावनाओं का ऐसा समन्दर है
जिसकी लहरें हर दिल से टकराती हैं
माता-पिता के लाड में प्रेम
भाई-बहन के बंधन में प्रेम
दोस्तों की दोस्ती से प्रेम
फिर हमसफ़र से प्रेम
प्रकृति ही प्रेम की जननी है
जो पहले से ही निर्धारित यह अनमोल रत्न हमें देती है
फिर क्यों वक़्त के चलते बदल जाते हैं हमारे प्रेम के भाव ?
प्रेम कम या ज़्यादा कैसे हो सकता है?
क्या ज़िम्मेदारियाँ हमारे प्रेम को स्वार्थी बना देती हैं ?
ना खोने देना अपने बहुमूल्य रत्नों को
कोई आपके माता-पिता की परछाई है
तो किसी में आपके भाई-बहन की झलक दिखती है
तो कोई आपके हमसफ़र की परछाई है
प्रेम का कोई मोल नहीं होता
साथ तो कोई भी आख़िरी तक रहने वाला नहीं है
तो क्यों न प्रेम को ही आख़िरी तक साथ लेते चले
प्रेम से हर खटास को मिटाते चलें
प्रेम की परिभाषा हम स्वयम् बन जाएँ..
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




