एक दूसरे से दूर रहकर पास होना।
याद की धमनियों में गीत सा बजना।।
रंगो का त्योहार धड़कनो में मचलता।
कभी चढ़ता कभी उतरता अनमना।।
शब्दों की पकड़ में आते नही ज़ज्बात।
चाह तेरी मछली की तरह फिसलना।।
ऊब का धागा निकाल फैंका जब से।
प्रेम अद्भुत अडिग खुद में जान लेना।।
दोस्त सा व्यावहार फोन पर तकरार।
एकांत में सोचकर खुद को टटोलना।।
अपने ही भीतर 'उपदेश' ओतप्रोत से।
बहुत अच्छा लगता गहराई में उतरना।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद