पहली बारिश है बाज़ार से कुछ ले आना
थोड़ा सा सकूँ और थोड़ा आराम ले आना
हो सके तो एक मुक़क्मल जहाँ ले आना
मन में छिपि जो इक आग है उसमें उदासी का जो अम्बार है
उस भीतर छिपे ज्वालामुखी को जो शांत कर दे
ऐसी ठंडी फुहार के कुछ इंतजामात ले आना.....
थोड़ा सकूँ और थोड़ा आराम ले आना
एक मासूम जो रोया है बहुत अपनों से बिछड़ कर इस कदर
बेबस सब ना घर ना घरोंदा सा अब लगता है ता-उम्र का जो हिसाब मिटा दे ऐसी मौसम की सौगात ले आना...
थोड़ा सा सकूँ और थोड़ा आराम ले आना
बहुत मिलते है लोग यहाँ इन आती जाती राहों पर
जो मिटा दे मन से हर मैल और हटा दे हर चेहरे से बोझिल
मुस्कान को ऐसे पानी की बौछार ले आना...
थोड़ा सकूँ और थोड़ा आराम ले आना
ना उपजे बैर का बीज ना खड़ी हो नफरत की दीवार
मिल जाए सब प्रेम से और बन जाए सबके बीच भाईचारे का बाँध ऐसी घनघोर वर्षा का उफान ले आना...
थोड़ा सकूँ थोड़ा आराम ले आना
हंस दे खिलखिला दे ऐ वक्त तू भूल जा हर दर्द को नाच ले थोड़ा झूम ले बेपरवाह हो जा
जो बहा दे हर गम और मिटा दे हर झूठी बज़्म को ऐसी जबरदस्त आंधी और तूफ़ान ले आना
थोड़ा सकूँ और थोड़ा आराम ले आना...
अनुराधा लखेपुरिया शाक्य