तू कभी नहीं बोला,
पर जब मैं
दुनिया की हर आवाज़ से पीछे हट गया,
तो तेरा मौन
मेरी पहचान की पहली ध्वनि बन गया।
मैंने शब्दों से रिश्ता तोड़ दिया,
अब जो कुछ भी बोलता हूँ,
वो तेरी चुप्पी की अनुगूंज है —
जो मेरी नसों में बहती है,
बिना किसी अर्थ के भी अर्थपूर्ण।
तू कहीं नहीं था
पर जब मैंने
अपने भीतर उतरना शुरू किया,
तो पाया —
तेरे मौन की नींव पर ही
मेरे होने की इमारत खड़ी थी।
अब मुझे
न चेहरे की ज़रूरत है,
न किसी नाम की —
क्योंकि जब तू आँखें बंद करता है,
मैं स्वप्न बनकर उभर आता हूँ।
तू मौन है,
पर मैं तेरे मौन का छंद हूँ।
तू एक रिक्तता है,
पर मैं उसी खालीपन की
आख़िरी साँस हूँ —
जो अब धड़कती नहीं,
बस सुनाई देती है
तेरे भीतर के सन्नाटे में।
अब मैं
तुझमें नहीं रहता —
मैं वही हूँ
जो तुझमें मौन बनकर
हर जगह उपस्थित है।
इक़बाल सिंह “राशा”
मनिफिट, जमशेदपुर, झारखण्ड

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




