सेहरों की चाह थी ना फूलों की सेज़
ना थी चाह मेहंदी वाली हाथों की
ना हीं किसी से कोई खेद..
हम जैसे भी हैं अच्छें हैं
इरादों के पक्के हैं
छुड़ाते दुश्मनों के छक्के हैं
हमें हमारी बंदूकें महबूबा लगती है
गोलियां बम बारूदें दिलवालियाँ लगती हैं
सरहदें तो जैसे महबूबा की गलियां लगतीं हैं..
अपनी तो चाह है कि सेज मिले तो
सरहदी खेतों की ससुराल बने तो
सरहदें दुश्मनों की और अगर आगोश
मिले तो मेरे देश की हसीन वादियों की
हमें तो इश्क है अपने देश से
बन के निग़हबान हम फना भी हो जाएंगे
हैं हम वतन के रखवाले हम दुश्मनों को
उनकी हीं भाषा में समझाएंगे ..
उठने वाली हर नापाक इरादें को
निस्तेनाबूत कर देंगें..
प्यार इश्क़ मोहब्बत वफ़ा हम सब
अपने देश के नाम कर देंगें..
हम देश के लिए जीते हैं
हम देश के लिए मर मिटेंगे..
हमदेश के लिए मर मिटेंगे..