दाना चुग गया वक्त मक्खियाँ भिन भिनाती।
अपनी बरबादी का गाना किस को सुनाती।।
हर कोई कर रहा दिखावा मुस्कान चेहरे पर।
मैं पलट कर देखती नही लगाती मुँह चिढ़ाती।।
किसी को कुछ समझती नही लम्हा याद मुझे।
हर चर्चा का हिस्सा रहीं अपनी बात मनवाती।।
अब दिलचस्पी नही उनको करीब आने की।
औरों की खुशी देखकर कब तक मुस्कुराती।।
आँसुओं के सहारे जिन्दगी कटती ही नही।
नौकरी जीने का हुनर 'उपदेश' नही सिखाती।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद