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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

मुझे प्रेम नहीं, मेरी साँस चाहिए

मैं खिली थी, तो तुझमें क़ैद क्यों हो गई?
तेरी बाहों में थी, पर जंग क्यों हो गई?

तू साया था या जलती हुई धूप था,
जो भी थी, मेरी रूह बेवजह रो गई।

तूने कहा — “इश्क़ है, बस मान लो मुझे”,
मैं जो हँसी, मेरी हँसी भी कसूर हो गई।

मेरे सपनों को तूने ‘फ़िज़ूल’ कहा,
और हर चुप्पी को “बीवी” की मंज़ूर हो गई।

तेरा प्रेम अगर बंदूक है, आदेश है,
तो सुन — मैं अब बग़ावत की हज़ार हो गई।

मुझे मत सिखा, कैसे जिया जाए यहाँ,
तेरी दुनिया में रहकर, मैं कब ज़िंदा रही?

मैं जो ‘ना’ कहूँ — तू खफा क्यों हो जाए?
क्या तेरे इश्क़ में मेरी भी ‘हाँ’ जरूरी रही?

अब नहीं पूछूँगी कि क्या पहनूँ, कहाँ चलूँ,
अब मेरी देह नहीं, मेरी साँस चाहिए।

तू प्रेम बनके आया था — अच्छा किया,
अब तू चला जा — मुझे खुद से प्रेम करना है अभी।




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (1)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Behtreen... Adarneey Mam, aap Bahut Shandaar Likhti Hain...Vishmay se bhar deti hain aapki rachnayein.. Aapko Saadar Pranam..

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