कापीराइट गजल
नहीं है कोई खबर
नहीं, है कोई खबर, कहां जा रहा हूं मैं
मंजिल है कौन सी, कहां जा रहा हूं मैं
हर कदम है सफर का ये कांटों से भरा
यह, कौन से, सफर पर, चल रहा हूं मैं
यह मंजिल सफर की, है ना जाने कहां
ये, किस रास्ते, पर अब, चल रहा हूं मैं
उफ, ये गर्मी और यह, कमबख्त हवाएं
इन की, तपिश, में अब, जल रहा हूं मैं
बङे, ही अजीब हैं ये, मंजिलों के रास्ते
ये किस मंजिल के लिए चल रहा हूं मैं
गुजरते हुए इनसे ये, सदियां गुजर गई
ये मालूम नहीं मुझे कहां, जा रहा हूं मैं
चलता, रहूंगा कब तक, ये मालूम नहीं
चलेगी, सांस, जब तक, चल रहा हूं मैं
होगा कब पूरा ना जाने, सफर ये मेरा
इसी, उम्मीद, में यादव, चल रहा हूं मैं
- लेखराम यादव
(मौलिक रचना)
सर्वाधिकार अधीन है