एक ख़त जो मैंने कभी नहीं लिखा,
पर दिल ने उसे हर रोज़ पढ़ा।
हर पन्ना मेरे दिल की धड़कनों का आईना था,
हर लफ़्ज़ मेरी अधूरी चाहत की गूँज।
कितनी बार मैंने उसे अपने दिल में संभाला,
कितनी बार अपनी साँसों में छुपा लिया।
हर मुस्कान तुम्हारे लिए थी,
हर आँसू मेरे भीतर दबा रहा।
कभी सपनों में तुम्हें पाया,
कभी यादों में तुम्हें खोया।
मेरे शब्द अधूरे,
मेरे ख्वाब अधूरे,
पर इन खामोशियों में मेरा प्यार पूरा था।
गुज़रती हवाओं में तुम्हारी खुशबू थी,
गुज़रते पलों में तुम्हारी मुस्कान थी।
फिर भी मैं लिख न पाया,
क्योंकि डर था—शायद तुम नहीं समझ पाओ।
कितनी रातें जागकर तुम्हें सोचता रहा,
कितनी सुबहें तुम्हारे बिना टूटी।
मेरे हाथों में अधूरे खत,
मेरे दिल में अधूरी बातें,
मेरी आत्मा में अधूरा प्यार।
कितनी बार मैंने अपने अल्फाज़ फाड़ दिए,
कितनी बार अपने जज़्बात दबा लिए।
पर हर पन्ने में तुम थे,
हर साँस में तुम्हारा नाम,
हर धड़कन में तुम्हारी याद।
और फिर भी,
मैं लिखता रहा,
अपने खामोश ख्वाबों को,
अपने अनकहे अहसासों को।
शायद एक दिन ये खत,
तुम्हारे हाथों तक पहुँचेंगे।
और तब मेरी चुप्पी,
मेरे अधूरे प्यार की कहानी कहेगी।
तुम समझ पाओगी कि मैंने कभी किसी और के लिए नहीं लिखा,
कि हर लफ़्ज़, हर साँस,
हर धड़कन,
सिर्फ तुम्हारे लिए थी।
और मैं…
हमेशा तुम्हारा रहा,
तुम्हें चाहता रहा,
चुपचाप, अनकहा,
पर पूरी तरह।
और यदि तुम भी कभी इसे महसूस कर सको,
तो जान लेना—
मेरे हर अधूरे ख्वाब में,
तुम ही मेरी पूरी दुनिया हो।
लेखक: अभिषेक मिश्रा "बलिया"