जब ईश्वर है खुद के अन्दर,
तो बाहर ढूँढ़ना भटकना क्यों !!
ग़र मन्दिर है खुद में ही यहीं,
तो दर-दर मत्थे टेकना क्यों !!
ग़र मन्दिर है सच में पावन,
तब तो उसमें कुछ बात भी है !!
जहाँ झूठ का हर पल वासा हो,
वहाँ खुद से ही समझौता क्यों !!
मन्दिर को मन्दिर रहने दो,
छल-कपट यहाँ से दूर करो !!
ग़र आया समस्या लेके कोई,
उसे और भी उलझाना ही क्यों !!
चन्दे-वन्दे उनसे ही लो,
जो स्वयं ही देना चाहते हों !!
जो तड़प के आया दुनिया से,
उसे और भी यूँ तड़पाना क्यों !!
हम राम भी हैं और रावण भी,
जो चाहोगे बन जाओगे !!
हम कौशिल्या कैकेई भी,
सोचो जैसा हो जाओगे !!
खुद के हिरदय में प्रभु बैठे,
तो इधर-उधर यूँ मटकना क्यों !!
सर्वाधिकार अधीन है