लहरों ने उसूलन रास्ता बना दिया।
तैरते जिस्म को किनारे लगा दिया।।
इश्क एक बार हो गया जिससे भी।
जीते जी उसीने जन्नत दिखा दिया।।
उसे मालूम है मैं लौटने वाला नहीं।
इसलिए चौखट पे दिया जला दिया।।
उसके ख्वाबों में आना नहीं छोड़ा।
कभी हँसती 'उपदेश' कभी रो दिया।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद