माफ़ करना मेरी दोस्त,
आ ना सकी तेरी विदाई में।
क्या करूं कैसे कहूं ?
कि कितने दर्द में हूॅं मैं।
इस छोटी सी उम्र में खुदा ने कितने दर्द दे दिए मुझे,
इससे वाक़िफ़ नहीं है तू।
मैं अपनी ज़िंदगी कैसे जी रही हूॅं ?
इससे अनजान है तू।
मेरे चाहने वाले कहते हैं मुझे,
कि तुझसे बात करके हमारा सारा दर्द मिट जाता है।
तू बात कम करती है हॅंसती ज्यादा है,
तेरी हॅंसी को देख हमारा दिन भी खुशी से बितता है।
पर वो जानते नहीं कि
अपनी हॅंसी के पीछे मैंने क्या -क्या छिपाया है ?
एक ऐसी दास्तां लिखी है मेरे अंदर दर्द की,
जिसे मैंने आज तक किसी को नहीं बताया है।
अब तू ना पूछना ऐ मेरी दोस्त मुझे कि क्या दास्तां है मेरी ?
एक वक्त आएगा जब बिना मेरे बताए ख़ुद-ब-ख़ुद
सब पता चल जाएगा तुझे।
बस मुझसे ऐसा ही दोस्ताना बनाए रखना ऐ मेरी दोस्त,
क्योंकि मुझे तो बताना भी नहीं आता और जताना
भी नहीं आता।
मेरे तो दो ही अज़ीज़ दोस्त है,
एक आरती तो एक सरोज है।
उतना ही प्यार है मुझे तुझसे,
जितना कि तेरी पूजा को तुझसे है।
मैं ना आ पाई इसका कोई ग़म ना करना,
ये सोचके कि मैं आई नहीं कहीं तू मुझसे दूर
ना हो जाना।
कोशिश तो बहुत की तेरी विदाई पर आने की
पर आ ना पाई,
हर कोशिश की तरह इस कोशिश में भी मुझे
नाकामयाबी ही मिली।
✍️✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️✍️