आसमांँ में जो दिखता है बिल्कुल वैसा हीं है मेरा चाँद
मगर न जाने कहांँ खो गया मिलता नहीं मुझको मेरा चाँद
मैंने पूछा जाने अनजाने से ढूंढ़ा भी गलियों चौबारे में
किसी को कुछ ख़बर न थी ना मुझे हीं मिला मेरा चाँद
मैं गुज़री उसी झील किनारे से जहांँ जाते थे हम साथ कभी
पानी में तो दिखा मगर छूते हीं लगा ये नहीं है मेरा चाँद
बेशक मैं हूँ चाँदनी उसकी मगर अब खो चुका है वजूद मेरा
अस्तित्व में फिर आ जाऊँगी जब मिल जाएगा मुझे मेरा चाँद