नरेंद्र ( स्वामी विवेकानंद)
निष्पक्ष भाव में
जग कानन के छांव में
अमृत कलश चमक उठा
जब औरस स्वर से दत्त सदन खनक उठा .
उन्मेष, प्रबल ओज से भरा ,विधु - कौमुदी से पुलक प्रकट करती धरा,
प्रभंजन समीर से भी वह तेज था ,
कांतिमय से परिपूर्ण वह नरेन्द्र था ।
वेदना के धारा से,
अकिंचन के गुजारा से,
वह कभी रुका नहीं ,
असत्य-कपट के आगे,
वह कभी झुका नहीं,
विश्व को सत्य बताने,
सत्य धर्म को उठाने,
देवलोक से आया वह देवदूत था ,
सत्यवादी भुवनेश्वरी देवी का वह सुत था,
गुरु परमहंस को प्राणो से प्यारा,
गगन में चमका बनके तारा ,अथक - अनंत जिसका ज्ञान ,अखण्ड-धरा पर गुंजे स्वाभिमान,
अदम्य साहस, कर्तव्यपथ का पुजारी ,
जिसके समक्ष आयी विपदा भी हारी ,
आधुनिक युवाओं का वह नेता था,
यशस्वी वह भारत माता का बेटा था।
...✍️कृति मौर्या