आ बैठके हम अपनी जिंदगी को सोचते है।
किसी मजलूम के बहते अश्को को पोछते है।।1।।
दिलों को मिलेगा हमारे भी कुछ तो सुकूं।
गर सब भूलकर हम अपने घरों को लौटते है।।2।।
एक हादसे से जीना कोई छोड़ देता नहीं।
आ फिर खुद को जिंदगी की तरफ मोड़ते है।।3।।
न जाने उन्हें किसकी है तलाश शिद्दत से।
दिनों रात सूनी पड़ी सड़को पर जो दौड़ते है।।4।।
अबतो ना आएगा शायद वो कभी लौटके।
पंख आने पर परिंदें अपने घर को छोड़ते है।।5।।
न जानें क्यूं हो खामोश कहते-सुनते नही।
चलों अपने-अपने सब राजे दिल खोलते है।।6।।
शिक़वा शिकायतों का न करेंगे तज़किरा।
ज़िंदगी को फिर उनकी ज़िंदगी से जोड़ते है।।7।।
न पूंछो हाले दिल आशिकी का यूं हमसे।
दीवाने दिल मे सब अरमान बनके डोलते है।।8।।
जाके देखो घरसे बाहर किसने दी आवज़।
कोई तो है गली में जो ये रात कुत्ते भोंकते है।।9।।
मुबारक हो तुमको तुम्हारे सब अपने रिश्ते।
हमारा क्या है अब हम तुम्हारा शहर छोड़ते है।।10।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




