लिखना चाहता था कुछ लिख दिया कुछ।
कभी मोहब्बत कभी चाह कभी और कुछ।।
जब देख पाया तो आँखों में दरिया आया।
गुलाब से चेहरे पर तहजीब आई और कुछ।।
सच कहने में एक कदम पीछे न रह सका।
जब सच्चाई दिल में कुलबुलाई और कुछ।।
ख्वाब भी फीके हकीकत लाजवाब उसकी।
हवाओ ने 'उपदेश' जुल्फ लहराई और कुछ।।
नजर झुकते ही घटायें घिर कर देखने आई।
आसमान में रंगत अजीब छाई और कुछ।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद