पहली बार जब गिड़गिड़ाया,
शब्द मेरे सूख गए,
जैसे मरुस्थल में बूँद गिरी हो,
और सूरज ने उसे चूस लिए।
दूसरी बार जब गिड़गिड़ाया,
आँखों में आँसू भर आए,
मन का सागर उमड़ पड़ा था,
पर कोई किनारा ना मिल पाए।
तीसरी बार जब गिड़गिड़ाया,
भाव ही बोलने लगे,
शब्द मौन में विलीन हुए,
हृदय दीप जलने लगे।
अब न कोई याचना बची,
न कोई चाह, न कोई वाणी,
सिर्फ आत्मा की पुकार बची,
सिर्फ समर्पण, सिर्फ कहानी।