कविता : पाप का घड़ा....
इंसान सोचता रहता वो
एक धार्मिक बड़ा है
मगर इंसान धार्मिक नहीं
वो तो पाप का घड़ा है
इंसान का कभी शादी होता
कभी बर्थडे आता
वो मुर्गा के पीछे पड़ता उसी
को काट कर खाता
इतना कर कर भी पेट
उसका भर ही नहीं पाता
फिर मुर्गी का आमलेट
बना कर मजे से चबाता
मुर्गा और मुर्गी के प्रति ये
हिंसात्मक क्यों करता व्यवहार ?
हे इंसान एक दिन तो
मरना भी है तू कितना बेकार
हे इंसान एक दिन तो
मरना भी है तू कितना बेकार.......
netra prasad gautam