बर्फ पिघलते ही दरिया में उफान आया।
हद के बीच रहने पर सम्भल नही पाया।।
जिसकी चाहत में भटकता रहा रात दिन।
यकीं होता नही सुकून का पल नही पाया।।
कितना लंबा रास्ता कितनी अड़चनें आईं।
नसीब उसका कुछ भी बदल नही पाया।।
उसे सब कुछ पता फ़ना कर दिया खुद को।
पुराने रास्ते पर 'उपदेश' निकल नही पाया।।
नदियों ने पाला निवाला दिया वक्त बेवक्त।
सादगी जीवन का सार ही चल नही पाया।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद