सोच से ही बदलाव है
वो दोस्ती ही क्या जो टूट जाए
वो रिश्ते ही क्या जो छूट जाएँ
वो नाराजगी ही क्या जो कम न हो
वो क्रोध ही क्या जो शान्त न हो
वो आवाज़ ही क्या जो दिल को न छू पाए
वो आँखें ही क्या जो ख़ूबसूरती न देख सके
वो अपनापन ही क्या जो हक़ न जता सके
वो भाव ही क्या जो इंसानियत से भरा न हो
वो स्वभाव ही क्या जो बदल न सके
वो इंतज़ार ही क्या जो अपनी पहल से ख़त्म न हो पाए..
-वन्दना सूद