इक क्षण भी क्यूं रुक जाऊं,
.... गर लक्ष्य को धार न पाऊं,
मैं विशाल चुनौती के सामने,
....क्या डरता हूँ जो रुक जाऊँ,
....क्या डरता हूँ जो रुक जाऊँ,
पग पग छाले ना देखूं,
.... रात दिन और अंगारे न देखूँ,
थक गया तो क्या हुआ,
.... इक ही जीवन है क्यों रुक जाऊं,
.... इक ही जीवन है क्यों रुक जाऊं,
उम्मीदें तेरी टिकी है मुझ पे,
....क्यूं अपने लक्ष्य से विमुख हो जाऊं,
....क्यूं अपने लक्ष्य से विमुख हो जाऊं,
आया यहां कुछ कर दिखाने को,
....मानव जीवन आजमाने को,
अब विपत्तियों से क्यों डर जाऊं,
.... इक ही जीवन है क्यों रुक जाऊं,
.... इक ही जीवन है क्यों रुक जाऊं,
कवि राजू वर्मा द्वारा लिखित
सर्वाधिकार अधीन है