बड़ी अच्छी लगती है
नैनो को ज्योतिमें रहती है
आराम की वो 'देवी' है
तरसते रहते पल पल है
सताने का मौका वो न छोड़े है
बड़ी अच्छी लगती है
रात के अंधेरोमें वो आती है
चुपचाप सी 'मतवाली' है
थोड़ी सी अड़ियल भी है
चाहें तो भी न छाती है
नट-खट वो तो चंचल है
बड़ी अच्छी लगती है
आलस की वो तो 'सहेली' है
पूछो न वो तो 'पहेली' है
दिनमें भी भीड़में भी छाएँ है
भूख की जैसे 'महारानी' है
लंबी लंबी सांसे भरकर आती है
बड़ी अच्छी लगती है
सभी की ज़रूरत और प्यारी है
गरीबीमें भी, 'अमीरी' है
न जग़ह न ठाठ की,'आदी' है
झोपड़ी या फुटपाथ पे भी सोती है
ये "निंदियाँ" जग की 'राजदुलारी' है
नज़ाकत गरिमा से, सजी 'कामिनी' है
बड़ी अच्छी लगती है