कुछ ख़्वाब अधूरे रह जाते हैं और कुछ अफ़साने भी
भूल जा ऐ दिल उन बातों को जिसे हुए गुज़रे ज़माने भी
कई बार सोचा भूल जाऊँ प्यार की हर एक सुहानी दास्तांँ
मगर हर पल हर शय और ये चाँद कहाँ देता है भूलाने भी
मैं तो मशरुफ़ थी दुनियाँ के ग़म को गले लगाने में मगर
कुछ तो अपनों ने कुरेदा और कुछ कसर न छोड़ी ज़माने भी