कुछ बाते जो कभी कही ही नही गई।
हृदय के पटल पर तैरती बाहर नही गई।।
यातनाओं की दुर्गंध फैली रही हर तरफ।
अपमानों की चीख इधर-उधर नही गई।।
उदासी की पोटली सीने में चुभती रही।
रिसाव न होने दिया गंध बाहर नही गई।।
घर में अकेली बैठी ख्वाहिशें मार कर।
ठंडी हवाएँ भारी होकर बाहर नही गई।।
आँसू कभी फूट कर बहे नही 'उपदेश'।
संस्कारों में बँधी संग रही बाहर नही गई।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद