कापीराइट गजल
न जाने कितने गम, कितने अश्क लिए, फिरते हैं लोग
इस, दिल में, हर रोज, नया
जख्म, लिए, फिरते हैं लोग
एक होती है कहानी सबकी
कहानी जुदा, बनाते हैं लोग
इस दौर में, लैला मजनूं की
कहानी लिए फिरते हैं लोग
क्या मिला इश्क करके भी
घूंट जहर का, पीते हैं लोग
जुदा, होते हैं, जब, प्यार में
मर-मर के ये, जीते हैं लोग
जुदा हो गए ये, एक-दूजे से
यादव कहां ये जीते हैं लोग
- लेखराम यादव
( मौलिक रचना )
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