यूं ही खुली किताब न बना कर,
सबके सामने , स्वर्णा।
कुछ ख्वाहिशें भी जरूरी है,
किताब को पढ़ने के लिए।
वो किताबें भी रद्दी बन जाती हैं,
जिन्होंने कभी,
जिन्दगी को मुकाम दिया था।
वक्त बदलता जरूर है।
मगर क़िताबें खोने के बाद,
दोबारा नहीं मिला करतीं।