याद का पन्ना छुते ही आँखें भर आई।
बन्द पडी किताब की धूल भर झाड़ाई।।
मिला नही अब तक तुझ जैसा मेरे को।
लाईन के बीच धुंधली तस्वीर उभर आई।।
दरिया नीला नीला नीले अम्बर के नीचे।
वृक्ष सहारे साफ दिखे फिर कसर आई।।
किसकी खातिर छोड़ा मुझको 'उपदेश'।
उसे लगा होगा हालात समझते देर आई।।
बेचैन हो रही आँखें क़ुसूर नही उनका।
गुब्बारे की हवा गई कुछ वैसी नजर आई।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद