शून्य और एक
शून्य जो समग्र और सर्वज्ञ,
शून्य जो समरूप है,
सीमित से असीमित है,
जिसके दामन में सब है,
दामन जो फैलता है और सिकुड़ता है,
सब कुछ प्राप्त किया फिर छोड़ दिया,
जो संग्रह ही था उसे बिखेर दिया,
अब तो संग्रह कौन करेगा, हम!
हम तो कुछ जानते नहीं,
सबके साथ जानेंगे,
जिसने बिखेरा था उसे समेटेगें देंगे,
विचारों की लड़ाई है,
प्रेम से, समझ कर,
होश में, जागकर,
जो शून्य था अब वो एक है,
एक है, हम सब एक हैं, शून्य के बाद एक है।
संख्याओं ने भी भेद नहीं किया,
गणनाओं ने भी फेर नहीं किया,
फिर हम सब क्यों अनेक हैं,
चिंता भी अनेक है, चिंतन भी अनेक हैं,
लेकिन यह सब एक है।
एक अल्पज्ञ है, सीमित है
हो सकते हैं शून्य के नौ रूप हैं,
इसलिए माता के भी नौ रूप हैं,
लेकिन एक जुड़ा फिर शून्य से,
देखो ये दस एक है, एक और एक , फिर एक है।
क्या तुम खुद चिंतन कर सकते हो,
इन संख्याओं पर, अलग से संख्या बनाओ
बनाओ, बनाओ, जितनी हो सके बनाओ,
हंसते हुए बनाओ चाहे रोते हुए बनाओ,
अनेक से अनेक, अनेक में भी एक,
जन्म तुम्हारा एक, चिंतन तुम्हारा एक,
लगाव तुम्हारा एक, ईश्वर तुम्हारा एक,
धर्म तुम्हारा एक, समाज तुम्हारा एक,
यह कर्म तुम्हारा एक, यह फल तुम्हारा एक,
सब समाया एक, साया भी तुम्हारा एक,
खाना खाते हो जो एक, पानी पीते हो जो एक,
सांस लेते हो जो एक, दिल में तुम्हारी धड़कन जो एक,
विचार तुम्हारा एक, शब्दों के लिए कंठ तुम्हारा एक,
फिर बताओ क्या अनेक,
तुमसे जुड़ा सच एक,
एक में हो एक रहोगे,
जल्दी समझो, आराम से,
बिखरे होना, इसलिए भूल गए।
जान जाओगे, कोई बात नहीं।
सब कुछ एक मिला देगा यह शून्य,
भरोसा रखना, हौसला रखना,
हम हैं तो मैं है।।