कापीराइट गजल
मैं तो ढ़लता सूरज हूं
मैं तो ढलता सूरज हूं यूं ढलते-ढलते ढ़ल जाऊंगा
अपनी आग में जलते-जलते ऐसे ही ढ़ल जाऊंगा
जलता, रहता हूं हर दम, मैं तो यूं ही चलते-चलते
जब आएगी शाम सुहानी संग उसके ढ़ल जाऊंगा
तन और मन में आग लिए मैं तो जलता रहता हूं
है, जलते रहना काम मेरा, मैं यूं ही जल जाऊंगा
ये कितनी सदियां बीत गई, ऐसे ही जलते-जलते
ना जाने आगे कितनी, सदियों में जलता जाऊंगा
मैं, तो जलता हूं केवल, अपने ही जीवन के लिये
लेकिन क्या मालूम था सबके लिए जल जाऊंगा
कहां पे है मंजिल मेरी ये भी मुझको मालूम नहीं
अपने उर की आग में मैं, एक दिन जल जाऊंगा
मैं, ही हूं आधार, तेरी इस, रंग-बिरंगी दुनियां का
जैसे ही ढ़लेगी शाम मेरी तब मैं भी ढ़ल जाऊंगा
गर, जीना है साथ मेरे, चलते रहो संग मेरे यादव
छूट जाएगा साथ तेरा जिस दिन मैं ढ़ल जाऊंगा
सर्वाधिकार अधीन है


The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra
The Flower of Word by Vedvyas Mishra







