मैं हूं तख़्लीक़ अपने यारब की,
मुझको मिट्टी शुमार मत करना ।
ख़ुद से हमको है बस यही कहना ,
ख़ुद को ख़ोकर किसी के क्या होना ।
ज़िंदगी तुझसे इतना तो निभा ही देंगे ,
अपने होने की हभ ख़ुद ही गवाही देंगे ।
हमको जो समझे हमीं सा ,
हमसे बेहतर कौन होगा ।
किसी से कभी नहीं टूटेगा एतबार ,
ख़ुद से बस कीजिएगा उम्मीद ए बेशुमार ।
हर एक सांस की क़ीमत चुकाई है हमने ,
ज़िंदगी हमने कहां तेरा उधार रक्खा है ।
तामीर फिर भी करेंगे हम अपनी हस्ती को ,
अंजाम चाहें मिट्टी का मिट्टी ही होना हो ।
ख़ुद को मुर्दा शुमार न करना ,
लोग डरते हैं ज़िंदा लोगों से ।
ब़िख़र के तुझको दिखाऊं ये नहीं मुमकिन ,
हम अपनी ज़ात में सिमटे हैं अपने होने तक ।
आप मेरी जगह नहीं होंगे ,
मुझको मेरा हिसाब देना है ।
मैं बदलना अगर नहीं चाहूं ,
आप मुझको बदल नहीं सकते ।
जैसे भी दे सबक़ सीखेंगे आज भी ,
हम आज भी तेरे मुक़ाबिल हैं ज़िंदगी ।
हमको पहचान अपनी प्यारी थी ,
हम बदलते तो हम नहीं रहते ।
----डाॅ फौज़िया नसीम शाद