उजालों की चाह वालों को अंधेरें
कहां कुछ बिगाड़ पायेंगी ।
बुलंद हौसलों को तूफानें कहां रोक पायेंगीं।
जज़्बा है कुछ कर गुजरनें की तो
हालातें कहां कदम रोक पायेंगीं।
इरादें नेक हों हम अकेले चाहें एक हों
मंज़िल मिल हीं जाती है।
और चप्पू चलाने वालों की कस्ती तूफ़ानों से ऊबर हीं जाती है।
और खिजां लाख फूलों को रोक ले बहारें
आ हीं जाती हैं।
बुलंद हौसलों मंज़िल पा हीं जाती हैं...
बुलंद हौसलों मंज़िल पा हीं जाती हैं....