ए आलसी अब तो जाग जा..
ए, आलसी अब तो जाग जा,
प्रभात निकल गया अब तो जाग जा।
समय का डाक तेरे घर आया है,
चिट्ठी लाया है।
चिट्ठी का पन्ना मुस्कुरा रहा है तुझे देखकर,
पर मुरझा रहा है।
कुछ पल सयाने शब्दों में गिरे पड़े हैं,
पर उनकी दवात के अंतिम पल गिने जा रहे हैं।
तू निंदिया के आंचल में ऐसे सो रहा है,
जैसे अभी भोर हो रहा है,
क्या मेहनत इतनी करनी पड़ी की,
लक्ष्य ही खो गया,
क्या आंसू इतने गिनने पड़े की,
हृदय ही खो गया,
क्या पानी इतना ठंडा था कि,
पवन सो गया,
क्या चिंता इतनी करनी पड़ी कि,
रिश्ता चिता से हो गया,
पर चिट्ठी के पन्ने बेपरवाह रहे,
शंकाए पूछते रहे,
जवाब ना मिला,
आलसी भी सो गया, मैं भी सो गया।
सूर्यास्त हो गया।।