वज़ह जो भी हो यों ख्यालो में ना आया कर।
सूरत झाँकने लगती इशारे से ना बुलाया कर।।
कलमकार होकर भी कुछ नजर नही आता।
हिज्र में हलकान हो गया ऐसे ना सताया कर।।
मन बेताब है तबियत मचलने लगी मिलने को।
कुछ तरीके ही बता दे मजबूरी ना जताया कर।।
तेरे लबों पर नाम आता जाने क्यों अच्छा लगता।
गुम सी हो जाती जब किसी को ना बताया कर।।
बात कोई नई नही वही पुरानी दोहराता 'उपदेश'।
छुपा कर रख राज खुलेआम ना आजमाया कर।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद