कविता : कलियुग....
ये कलियुग है जनाब
हर तरफ है खराब
जूते शोरूम में सजे पड़े हैं
किताबें फुटपाथ पर सड़े हैं
लोग शराब नगद घटक जाते हैं
दूध फिर घर में उधार लाते हैं
कुत्ते महलों में मजे से ऐश कर रहे हैं
गाए सड़कों में धक्के खा खा के मर रहे हैं
प्रवृति थोड़ा उल्टा जैसा ही है
यहां तो जनाब ऐसा ही है
यहां तो जनाब ऐसा ही है.......