तन को जैसे चित्र ने, रेखाओं में ढाल,
नयनों में नीलांबर सम, अधरों पे रसभाल।
नूपुर बोले पग-पग में, कंगन स्वर बरसाय।
केश लटाएँ मेघ सम, गंध पवन चुराय।।
नैन कमल से भी शरमाएँ, मृग उस पर मोहित।
उसकी एक झलक देखो तो, दिन बन जाए गीत।।
चंचल चितवनों में बसी चाँदनी,
चरण चलन में रागिनी, रव रति रसमयी।
लज्जा की लहरें लहराए कपोलों पे,
मुस्कान ज्यों सूरज उगे शरद पूर्णिमा नई।
केशों की वह बाँध में, बँधी रात मुस्काय।
उसके चलने से लगे, ऋतु बसंत भी गाय।।